परिचय:
हर खामोशी के पीछे एक कहानी छिपी होती है, जो समय के साथ धुंधली हो जाती है, पर कभी खत्म नहीं होती। यह कहानी भी एक ऐसी ही खामोशी की है, जो सदियों से अपने दर्द, अपनी भावनाओं और अपने प्रेम को छुपाए हुए है। रेखा, एक जिज्ञासु लेखिका, उस खामोशी की आवाज़ सुनने और उसे समझने के लिए तैयार थी।
पुरानी हवेली के आसपास के लोग कहते हैं कि उसकी दीवारों में किसी भूली हुई प्रेम कहानी की परछाई बसी है। उस हवेली के हर कोने में सन्नाटा पसरा हुआ है, मानो किसी अनकहे शब्द को अपने भीतर दबाए बैठा हो। यही खामोशी रेखा को वहाँ खींच लाई, एक ऐसी खामोशी जो उसे अपनी गहराइयों में समा लेना चाहती थी।
क्या रेखा इस खामोशी में छुपी उस भूली हुई दास्तां को दुनिया के सामने ला पाएगी? या फिर वह भी उसी खामोशी का हिस्सा बन जाएगी?
खामोशियाँ बोलती हैं – khamoshiyan Bolti hain!
रात के गहरे अंधेरे में जब सारे शहर की बत्तियाँ बुझ चुकी थीं और सड़कें सूनी हो चुकी थीं, तब नन्हे कदमों की आहट धीरे-धीरे एक पुरानी हवेली की तरफ बढ़ रही थी। वह हवेली जिसे लोग कई कहानियों और रहस्यमयी किस्सों से जोड़ते थे। इस हवेली में सिर्फ खामोशियों का बसेरा था, और यह खामोशियाँ किसी अजनबी की आवाज़ से टूटना नहीं चाहती थीं। लोगों का मानना था कि वहाँ पर पुरानी यादें बसी थीं जो खामोशी में ही जीना पसंद करती थीं।
रेखा, एक युवा लेखिका थी जो नई कहानियों की तलाश में हमेशा भटकती रहती थी। उसकी रूह को सुकून नहीं मिलता था जब तक कि वह एक अद्भुत और रहस्यमयी कहानी को अपने शब्दों में बुन न ले। एक दिन, उसने इस पुरानी हवेली की कहानी सुनी और उसके अंदर की लेखिका का उत्साह जाग उठा। उसने निश्चय किया कि वह इस खामोशी की गहराईयों को जानकर ही वापस लौटेगी।
खामोशियाँ बोलती हैं – khamoshiyan Bolti hain!
जैसे ही रेखा ने हवेली के दरवाजे को हाथ से धकेला, एक हल्की सी सरसराहट हवा में गूंज उठी। अंदर की खामोशी में एक अजीब सा सुकून था, मानो हवेली ने रेखा का स्वागत किया हो। रेखा ने अपनी छोटी सी टॉर्च जलाई और अंदर की ओर बढ़ी। हवेली के हर कोने में जैसे कोई खामोश कहानी बसी हुई थी, जो बस किसी के सुनने का इंतजार कर रही थी। दीवारों पर लगे पुराने चित्र, छूटी हुई किताबें और धूल से ढकी मेजें उस समय की गवाह थीं, जो यहां गुज़री थी।
अचानक, रेखा की नज़र एक पुराने लकड़ी के बक्से पर पड़ी। उस बक्से के ऊपर एक चिट्ठी रखी थी जिस पर लिखा था, “अगर तुम्हें मेरी खामोशियाँ सुनाई दें, तो समझ लेना कि तुमने मुझे पा लिया।” रेखा का दिल धड़कने लगा। उसने बक्से को खोला तो उसमें कई पुराने खत और एक जर्जर डायरी रखी हुई थी। उसने डायरी का पहला पन्ना खोला, और वहां किसी अदृश्य आवाज़ ने खामोशी को तोड़ते हुए उसके दिल को छू लिया।
खामोशियाँ बोलती हैं – khamoshiyan Bolti hain!
डायरी के पन्नों में वह कहानी थी जो उस हवेली के मालिक की थी। उसका नाम अनिरुद्ध था, एक ऐसे शख्स जो अपनी प्रेमिका के खोने के बाद यहां आ बसा था और अपनी सारी बातें इन दीवारों में कैद कर गया था। हर शब्द में उसकी पीड़ा थी, हर वाक्य में उसकी खामोशी थी। रेखा को ऐसा लगा जैसे अनिरुद्ध की खामोशियाँ उसके दिल से बातें कर रही हैं।
जैसे-जैसे रेखा उस कहानी को पढ़ती गई, उसके दिल की धड़कनें तेज़ होती गईं। उसे महसूस हुआ कि अनिरुद्ध की आत्मा आज भी इस हवेली में भटक रही है, अपनी खामोशियों के सहारे अपने दर्द को जी रही है।
खामोशियाँ बोलती हैं – khamoshiyan Bolti hain!
रेखा ने अब तय किया कि वह इस कहानी को दुनिया तक पहुँचाएगी। उसने डायरी को संभालते हुए कहा, “अनिरुद्ध, मैं तुम्हारी खामोशियाँ लोगों तक पहुँचाऊँगी। अब तुम्हें अपनी तन्हाई में जीने की ज़रूरत नहीं।” जैसे ही उसने यह कहा, हवेली की खामोशी में एक सुखद बदलाव आया। मानो खामोशियाँ अब अपनी कहानी बयाँ करने को तैयार थीं।
इस तरह रेखा ने अनिरुद्ध की खामोशियों को अपने शब्दों में ढाला, और उसका दर्द, उसकी पीड़ा और उसका प्रेम लोगों तक पहुँचाया। हवेली की खामोशियाँ अब सबको सुनाई देने लगीं, क्योंकि “खामोशियाँ बोलती हैं” — बस उन्हें सुनने वाला चाहिए।
अस्वीकरण:
यह कहानी “खामोशियाँ बोलती हैं” पूरी तरह से काल्पनिक है। इसमें वर्णित पात्र, स्थान, और घटनाएँ लेखक की कल्पना का परिणाम हैं। किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति, वास्तविक स्थान, या घटना से समानता मात्र एक संयोग है। इस कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन है और इसका किसी प्रकार की वास्तविकता या ऐतिहासिक घटनाओं से कोई संबंध नहीं है।